।।श्री: पाद।।

विक्रम सम्वत २०८१, काशी क्षेत्र

अधिक मास एवं श्रावण

(०४ जुलाई २०२३ - ३१ अगस्त २०२३)

।। श्री गणेशाय नमः। हरि ॐ। श्री मात्रे नमः। शिवाय नमः। ॐ सूर्याय नमः ।।

विशिष्ट अनुष्ठान

वन्दे काशी साधना अभियान का एकमात्र लक्ष्य शास्त्र सम्मत विधि एवं श्रद्धा भक्ति के द्वारा उस विभिन्न रुपी सच्चिदानंद भगवान की अर्चना-सेवा-साधना करना है। कई वर्षों के बाद श्री अधिक पुरुषोत्तम मास श्रावण मास के साथ आया है जो कि महा पुण्य का सूचक है इस अधिक मास पुरुषोत्तम मास में वन्दे काशी साधना अभियान के अंतर्गत महा पुण्य पावन श्री काशी क्षेत्र में भव्य अनुष्ठान एवं महा पूजन का संकल्प लिया गया है।

पुरुषोत्तम मास के प्रत्येक दिन श्री हरि-हर पूजन सेवा की जाएगी अर्थात् दैनिक भगवान श्री हरि का शालिग्राम स्वरुप में अभिषेक, पूजन एवं १००० तुलसी अर्चन सहित विष्णु सहस्रनाम पाठ एवं भगवान शिव का रुद्राभिषेक होगा।

इस प्रकार अधिक मास में ३० भव्य विष्णु सहस्रनाम अनुष्ठान एवं भगवान शिव के ३० रुद्राभिषेक होंगे!!

इसके पश्चात् श्रावण मास में दैनिक विशिष्ट रुद्राभिषेक किए जाएंगे अर्थात् कुल ३० रुद्राभिषेक !

दोनों मास मिलाकर ६० रुद्राभिषेक, ३० श्री विष्णु अनुष्ठान एवं अन्य पर्व – नाग पंचमी, चतुर्थी, सक्रांति आदि में तिथि विशेष का पूजन होगा

यह दिव्य कार्यक्रम आप सज्जन यजमानों के सामूहिक संकल्प के द्वारा ही संभव होगा |

इसलिए आप सब से निवेदन है कि यथासंभव आप भी इस दुर्लभ सात्विक प्रयास में जुड़ें और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें।

अधिक जानकारी के लिए पंडितजी से संपर्क करें। यदि आप इस कार्यक्रम में जुड़ना चाहें तो आचार्य जी को फ़ोन कर संकल्प ले लेवें।

दैनिक पूजन-पाठ से पहले प्रत्येक यजमान और उनके समस्त परिवार के लिए त्रिविध ताप, नवग्रह शांति एवं दोषों के निवारण हेतु, मनोकामना पूर्ति, प्रभु की प्रीति और साथ ही विश्व शान्ति के लिए प्रार्थना संकल्प लिया जाएगा।

दिन के अंत में पूजन का आशीर्वाद, फोटो एवं यथासंभव वीडियो व्हाट्सएप्प के द्वारा साझा किया जाएगा।

संपर्क

पंडित स्वर्णप्रताप चतुर्वेदी -+91 8317004137

तुल्सीदासजी मंदिर, तुलसी घाट, काशी (वाराणसी)

पंचांग / कार्यक्रम

पुरुषोत्तम मास / अधिक मास 

  • प्रत्येक (३०) दिन श्री हरि-हर पूजन सेवा: श्री हरि का शालिग्राम स्वरुप में अभिषेक, पूजन एवं १००० तुलसी अर्चन सहित विष्णु सहस्रनाम पाठ एवं
  • भगवान शिव का रुद्राभिषेक
  • जुलाई ०६, गुरूवार – गजानन संकष्टी चतुर्थी – भगवान गणेश पूजन, सहस्र दूर्वा अर्चन सहित सहस्रनाम पाठ
  • जुलाई ०९, रविवार – भानु सप्तमी – भगवान सूर्य का अभिषेक, पूजन, स्तोत्र पाठ (स्नान – दान की महिमा )
  • जुलाई १३, गुरूवार – कामिका एकादशी – भगवान शालीग्राम एवं भगवान शिव पूजन/अभिषेक एवं सहस्र तुलसी अर्चन सहित सहस्रनाम पाठ
  • जुलाई १५, शनिवार – प्रदोष व्रत – भगवान शिव का विधिवत उपचार पूजन एवं रुद्राभिषेक
  • जुलाई १६, रविवार – कर्क सक्रांति – भगवान सूर्य का अभिषेक, पूजन, स्तोत्र पाठ (स्नान – दान की महिमा )
  • जुलाई २१, शुक्रवार – विनायक चतुर्थी – भगवान गणेश पूजन, सहस्र दूर्वा अर्चन सहित सहस्रनाम पाठ
  • जुलाई २९, शनिवार – पद्मिनी एकादशी – भगवान शालीग्राम एवं भगवान शिव का अभिषेक एवं सहस्र तुलसी अर्चन
  • जुलाई ३०, रविवार – प्रदोष व्रत – भगवान शिव का विधिवत उपचार पूजन एवं रुद्राभिषेक
  • अगस्त ०१, मंगलवार – श्रावण अधिक पूर्णिमा – भगवान सत्यनारायण शालीग्राम अभिषेक एवं विधिवत पूजन

श्रावण मास

  • प्रत्येक (३०) दिन भगवान शिव का पूजन, रुद्राभिषेक, श्रृंगार इत्यादि
  • अगस्त ०४, शुक्रवार – विभुवन संकष्टी चतुर्थी – भगवान गणेश पूजन, सहस्र दूर्वा अर्चन सहित सहस्रनाम पाठ
  • अगस्त १२, शनिवार – परम एकादशी – भगवान शालीग्राम एवं भगवान शिव का अभिषेक एवं सहस्र तुलसी अर्चन
  • अगस्त १३, रविवार – प्रदोष व्रत – भगवान शिव का विधिवत उपचार पूजन एवं रुद्राभिषेक
  • अगस्त १७, गुरूवार – सिंह सक्रांति – भगवान सूर्य का अभिषेक, पूजन, स्तोत्र पाठ (स्नान – दान की महिमा )
  • अगस्त २०, रविवार – विनायक चतुर्थी – भगवान गणेश पूजन, सहस्र दूर्वा अर्चन सहित सहस्रनाम पाठ
  • अगस्त २१, सोमवार – नाग पंचमी – नाग देवता का विधिवत पूजन अर्चन
  • अगस्त २२, मंगलवार – भगवान कल्कि जयंती – भगवान शालीग्राम का अभिषेक एवं सहस्र तुलसी अर्चन
  • अगस्त २३, बुधवार – तुलसीदासजी जयंती समारोह – गोस्वामीजी का पूजन (उन्हीं के मंदिर में)
  • अगस्त २७, रविवार – पुत्रदा एकादशी – भगवान शालीग्राम एवं भगवान शिव का अभिषेक एवं सहस्र तुलसी अर्चन, भगवती का पूजन
  • अगस्त २८, सोमवार – प्रदोष व्रत – भगवान शिव का विधिवत उपचार पूजन एवं रुद्राभिषेक
  • अगस्त ३०, बुधवार – पूर्णिमा, श्रावणी (यजुर्वेद उपाकर्म), भगवान हयग्रीव जयंती – भगवान हयग्रीव की सेवा में विष्णु सहस्रनाम पाठ, उपाकर्म स्वतः कीजिये

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पंडित स्वर्णप्रताप चतुर्वेदी -+91 8317004137

तुल्सीदासजी मंदिर, तुलसी घाट, काशी (वाराणसी)

पुरुषोत्तम / अधिक मास माहात्म्य

मल मास पुरुषोत्तम मास, अधिक मास या अधिमास के नाम से भी जाना जाता है। ग्रंथों में प्रति २८ मास के पश्चात् और ३६ मास से पहले अधिक मास होने की बात कही गई है। वर्ष के १२ महीनों में सूर्य क्रम से १२ राशियों (मेष से मीन राशि तक) पर आता है। अधिक मास में सूर्य का किसी राशि पर संक्रमण नहीं होता, इसी कारण यह एक माह अलग ही रह जाता है। अधिक मास में सूर्य की सक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने से इसे ‘मल मास’ (मलिन मास) कहा गया है।

स्वामी रहित होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया। इससे लोग इसकी घोर निंदा करने लगे।

मल मास ने भगवान को प्रार्थना कि, भगवान बोले – “मल मास नहीं, अब से इसका नाम पुरुषोत्तम मास होगा। इस महीने जो जप, सत्संग, ध्यान, पुण्य आदि करेंगे, उन्हें विशेष लाभ होगा।” तब से मल मास का नाम पड़ गया ‘पुरुषोत्तम मास’।

पुरुषोत्तम मास के प्रति तीसरे वर्ष में आगमन पर सभी स्थानों पर भगवान के भजन और पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। इस पवित्र मास में जो भी कोई श्रद्धा-भक्ति के साथ शुभ अच्छे कार्य करता है उन्हें अपने द्वारा किए गए शुभ कर्मों का कई गुना पुण्य मिल सकेगा।

श्रावण मास की महिमा

पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें श्रावण महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।

अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के श्रावण महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

श्रावण में शिवशंकर की पूजा

श्रावण के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन का प्रारम्भ महादेव के अभिषेक से होता है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

महादेव का अभिषेक

महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर नाना प्रकार के द्रव्यों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।

रुद्राभिषेक पूजा के लाभ

  • स्वास्थ्य समस्याओं का उन्मूलन
  • स्वस्थ मन और सकारात्मक भावना का विस्तार
  • दोषों और कुंडली संबंधी बाधाओं का निवारण
  • शिक्षा, नौकरी और करियर में सफलता
  • सौहार्द्रपूर्ण संबंध
  • वित्तीय परेशानियों का उन्मूलन
  • कुटुंब में शांति और सद्भावना
  • आध्यात्मिक उत्थान

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तुल्सीदासजी मंदिर, तुलसी घाट, काशी (वाराणसी)